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धर्म के दस लक्षण
धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना –
ये दस धर्म के लक्षण हैं …
‘न लिङ्गं धर्मकारणम्’
अर्थात् धर्म का कारण बाह्य चिह्न नहीं, धर्म तो अन्दर से जीने की वस्तु है। हाँ! तो सुनिये मनुप्रोक्त धर्म के लक्षणों में पहला लक्षण है धृति। धृति का अर्थ होता है धैर्य। किसी भी काम को सुचारुता से करने के लिए धैर्य की अपेक्षा होती है। धैर्य से कार्य सम्पादन के लिए, बुद्धि की स्थिरता आवश्यक है, इसलिए स्थिर बुद्धि ही धैर्य की जननी है। चञ्चल बुद्धि से किया हुआ कार्य परिणाम में श्रेष्ठ नहीं हो सकता, अतः प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि धैर्य जैसे गुण को अपने अन्दर अवश्य धारण करे। धैर्य के विषय में किसी कवि ने क्या ही सुन्दर लिखा है …
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